ओजस्विता, आरोग्यता तथा मन मस्तिष्क में सकारात्मकता की प्राप्ति हेतु करें इस स्तोत्र का पाठ

ओजस्विता, आरोग्यता तथा मन मस्तिष्क में सकारात्मकता की प्राप्ति हेतु करें इस स्तोत्र का पाठ

श्रीमत्आदित्यहृदय के अन्तर्गत श्रीसूर्यमण्डलाष्टकम् स्तोत्र लिखा हुआ है | इस स्तोत्र में तेरह श्लोक हैं जिनमें से बारह श्लोकों में भगवान् सूर्य की कीर्ति के विषय में बतलाया गया है | भगवान् सूर्य अत्यन्त तेजस्वी, और प्रकाशवान हैं | इन्हीं के से समस्त जगत् प्रकाशित होता है, एवं सभी में सकारात्मकता का सन्निवेश होता है | जो साधक प्रतिदिन प्रातःकाल इस स्तोत्र का पाठ करता है एवं भगवान् को गन्ध-अक्षत और पुष्प युक्त अर्घ्य प्रदान करता है उसे नीरोगता, ओजश्वता, तथा अत्यन्त तेज भगवान् सूर्य प्रदान करते हैं |   

        नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे जगत्प्रसूतिस्थितिनाशहेतवे।
        त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरञ्चिनारायणशङ्करात्मने।।१।।

जो जगत् के एकमात्र नेत्र (प्रकाशक) हैं, संसार की उत्पत्ति, स्थिति और नाश के कारण हैं; उन वेदत्रयीस्वरूप, सत्त्वादि तीनों गुणों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश नामक तीन रूप धारण करने वाले सूर्यभगवान्‌ को नमस्कार है।

       यन्मण्डलं दीप्तिकरं विशालं रत्नप्रभं तीव्रमनादिरूपम्।
       दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्।।२।।

जो प्रकाश करने वाला, विशाल, रत्नों के समान प्रभा वाला, तीव्र, अनादिरूप और दारिद्र्यदुःख के नाश का कारण है; वह सूर्यभगवान्‌ का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

       यन्मण्डलं देवगणैः सुपूजितं विप्रैः स्तुतं भावनमुक्तिकोविदम्।    
       तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्।।३।।

जिनका मण्डल देवगणोंसे अच्छी प्रकार पूजित है; ब्राह्मणोंसे स्तुत है और भक्तोंको मुक्ति देनेवाला है; उन देवाधिदेव सूर्यभगवान्‌को मैं प्रणाम करता हूँ और वह सूर्यभगवान्‌का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

       यन्मण्डलं ज्ञानघनं त्वगम्यं त्रैलोक्यपूज्यं त्रिगुणात्मरूपम्।
       समस्ततेजोमयदिव्यरूपं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्।।४।।

जो ज्ञानघन, अगम्य, त्रिलोकीपूज्य, त्रिगुणस्वरूप, पूर्ण तेजोमय और दिव्यरूप है, वह सूर्यभगवान् का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

       यन्मण्डलं गूढमतिप्रबोधं धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम्।
       यत्सर्वपापक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्।।५।।

जो सूक्ष्म बुद्धि से जानने योग्य है और सम्पूर्ण मनुष्यों के धर्म की वृद्धि करता है, तथा जो सभी के  पापों के नाश का कारण है; वह सूर्यभगवान्‌ का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

       यन्मण्डलं व्याधिविनाशदक्षं यदृग्यजुःसामसु संप्रगीतम्।
       प्रकाशितं येन च भूर्भुवः स्वः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्।।६।।

जो रोगों का विनाश करने में समर्थ है, जो ऋक्, यजु और साम- इन तीनों वेदों में सम्यक् प्रकार से गाया गया है तथा जिसने भूः, भुवः और स्वः - इन तीनों लोकों को प्रकाशित किया है; वह सूर्यभगवान्‌ का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

      यन्मण्डलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः।
      यद्योगिनो योगजुषां च संघाः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्।।७।।

वेदज्ञाता लोग जिसका वर्णन करते हैं; चारणों और सिद्धों का समूह जिसका गान किया करता है तथा योग का सेवन करने वाले और योगी लोग जिसका गुणगान करते हैं; वह सूर्यभगवान्‌का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

       यन्मण्डलं सर्वजनेषु पूजितं ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके।
       यत्कालकल्पक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्।।८।।

जो समस्त जनों में पूजित है और इस मर्त्यलोकमें प्रकाश करता है तथा जो काल और कल्प के क्षय का कारण भी है; वह सूर्यभगवान्‌ का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

       यन्मण्डलं विश्वसृजां प्रसिद्ध मुत्पत्तिरक्षाप्रलयप्रगल्भम्।
       यस्मिञ्जगत्संहरतेऽखिलञ्च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्।।९।।

जो संसार की सृष्टि करने वाले ब्रह्मा आदि में प्रसिद्ध है; जो संसार की उत्पत्ति, रक्षा और प्रलय करने में समर्थ है; और जिसमें समस्त जगत् लीन हो जाता है, वह सूर्यभगवान्‌ का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

       यन्मण्डलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मा परं धाम विशुद्धतत्त्वम्।
       सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्।।१०।।

जो सर्वान्तर्यामी विष्णुभगवान्‌ का आत्मा तथा विशुद्ध तत्त्ववाला परमधाम है; और जो सूक्ष्म बुद्धि वालों के द्वारा योगमार्ग से गमन करने योग्य है; वह सूर्यभगवान्‌ का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

       यन्मण्डलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः।
       यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्ति पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्।।११।।

वेदके जानने वाले जिसका वर्णन करते हैं; चारण और सिद्धगण जिसको गाते हैं; और वेदज्ञ लोग जिनका स्मरण करते हैं; वह सूर्यभगवान्‌ का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

       यन्मण्डलं वेदविदोपगीतं यद्योगिनां योगपथानुगम्यम्।
       तत्सर्ववेदं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्।।१२।।

जिनका मण्डल वेद वेत्ताओं के द्वारा गाया गया है; और जो योगियों से योगमार्ग द्वारा अनुगमन करने योग्य हैं; उन सब वेदोंके स्वरूप सूर्यभगवान्‌को प्रणाम करता हूँ; और वह सूर्यभगवान् का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।
       मण्डलाष्टतयं पुण्यं यः पठेत्सततं नरः।
       सर्वपापविशुद्धात्मा सूर्यलोके महीयते।।

जो पुरुष परम पवित्र इस मण्डलाष्टकस्तोत्र का पाठ सर्वदा करता है; वह पापों से मुक्त हो जाता है, तथा विशुद्धचित्त होकर सूर्यलोक में प्रतिष्ठा पाता है।

“श्री मत्आदित्यह्रदय के अन्तर्गत श्रीसूर्यमण्डलाष्टकम् सम्पूर्ण हुआ” |  

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