विवाह में क्यों जरूरी है सिंदूर और मंगलसूत्र की परम्परा

विवाह में क्यों जरूरी है सिंदूर और मंगलसूत्र की परम्परा

कहते हैं जोड़ियां भगवान बनाकर भेजते हैं और पृथ्वी में उनका मिलन विवाह के रूप में होता है। विवाह में दोनों आत्मा एक में सम्मिलित होकर एक नए जीवन की शुरुआत करती हैं, जो कि पूरे विधि विधान से प्रारंभ होता है। विवाह में मंगलसूत्र एवं सिंदूरदान की प्रथा अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इनके बिना विवाह संपन्न नहीं होता है, लेकिन अधिकतर लोगों को इन परंपराओं के महत्ता का ज्ञान नहीं होता और जिसके कारण लोग केवल एक हस्ताक्षर के बल पर कचहरी में विवाह कर रहे हैं। आज हम इस लेख में विवाह की महत्वपूर्ण प्रथा सिंदूरदान और मंगलसूत्र के महत्व के विषय में जानेंगे-  

विवाह में सिंदूरदान का महत्व 

सिंदूर सुहागन स्त्रियों का प्रमुख श्रृंगार होता है और मांग में सिंदूर सुहाग की निशानी मानी जाती है। विवाह के समय वर, अपनी वधू की मांग में 3 बार चांदी के सिक्के या अंगूठी से सिंदूर भरता है। इस दिन के बाद से महिला जब तक सुहागन रहती है अपनी मांग में अपने पति की निशानी के रूप में सिंदूर भरती हैं। वर द्वारा वधू की मांग में सिंदूर भरना इस बात का प्रमाण भी है कि दोनों परिवारों की इच्छा से विवाह संपन्न हुआ और इसलिए जीवन भर अपने कर्तव्यों को निभाएंगे। वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो सिंदूर लगाने से मानसिक तनाव कम होता है और मस्तिष्क संबंधित बीमारियां दूर होती हैं।

सिंदूर की एक प्रचलित कथा रामायण काल की भी है। माता सीता भगवान राम की दीर्घायु के लिए अपनी मांग में सिंदूर भरती थीं और हनुमान जी ने एक बार माता सीता से सिंदूर लगाने का कारण पूछा, तब माता सीता ने कहा कि यह सिंदूर मेरे सुहाग का प्रमाण है और इसी सिंदूर के कारण भगवान श्री राम मुझसे अत्यंत प्रेम करते हैं।

हनुमान जी राम जी के परम भक्त हैं, फिर उन्होंने भी विचार किया कि यदि माता सीता के सिंदूर लगाने से भगवान श्री राम उनसे इतना प्रेम करते है तो क्यों ना मैं भी सिंदूर लगाऊं, तब हनुमान जी ने भी अपने पूरे शरीर में सिंदूर लगाया एवं भगवान राम के समझ पहुंचे और तब से ही उनकी मूर्ती पर सिंदूर चढ़ाया जाता है।  

विवाह में मंगलसूत्र धारण की रीति

विवाह संस्कार में जब तक वर द्वारा वधू के मंगलसूत्र नहीं पहनाया जाता, तब तक विवाह संपन्न नहीं होता है। मंगलसूत्र की प्रथा लंबे समय से चली आ रही है। मंगलसूत्र पति-पत्नी के सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, जो कि उन्हें मंगल जीवन के सूत्र से जोड़ता है।  

मंगलसूत्र जीवन पर्यंत शोभा और सौंदर्य को बनाए रखता है, जो पति-पत्नी के बीच एक सार्वभौमिक और पवित्र बंधन को दर्शाता है एवं विवाहित जीवन में समृद्धि और आनंद की प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इसे रक्षा धागा भी कहा जाता है।  

विवाह में मंगलसूत्र की रीती विशेषतः पति की सुरक्षा और सौभाग्य का संकेत है। मंगलसूत्र काले मोती और सोने से बनाया जाता है और सोना सुहाग का प्रतीक होता है। विवाह के पश्चात् वधू नए जीवन में प्रवेश करती है, इस समय उसके भीतर तनाव एवं घबराहट की स्थिति पैदा होती है और आयुर्वेद कहता है कि सोने में उपचारात्मक गुण पाए जाते हैं जो विवाहित महिलाओं को तनाव से मुक्त करते हैं। साथ ही हृदय के पास होने से रक्तचाप नियंत्रण में रहता है।

ज्योतिषीय दृष्टि से मंगलसूत्र में सोना और काले मोती का उपयोग विवाहित जीवन के लिए शुभ माना जाता है और सुख-शांति की प्राप्ति में मदद करता है। इसलिए मंलगसूत्र महिलाओं के 16 श्रृंगार में सम्मिलित होता है।

इसी प्रकार विवाह संस्कार में बहुत सी महत्वपूर्ण रीति होती हैं जिसकी अपनी अलग ही महत्ता है। सनातन संस्कृति में हर एक सांस्कृति कार्य, पूजा एवं संस्कार वैदिक विधि द्वारा ही संपन्न किया जाता है। इसी प्रकार से विवाह संस्कार वैदिक विधि द्वारा ही संपन्न की जाती हैं, जो कि हमारी संस्कृति की महत्ता को और बढ़ाता है। हमारा देश विविधताओं का देश है, यहां पर प्रत्येक किलोमीटर में संस्कृति का एक नया रूप देखने को मिलता है, और अपनी संस्कृति के अनुसार विवाह की रस्में विभिन्न रूप में देखने को मिलती है और यही विभिन्नता हमारे देश की शोभा को बढ़ाती हैं।

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