श्रीलाङ्गूलोपनिषद्

श्रीलाङ्गूलोपनिषद्

कथा | Duration : 3 Hours
Price Range: 4100 to 11000

About Puja

श्री हनुमान जी महाराज के विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी श्रीरामचरितमानस जी के सुन्दर काण्ड में कहते हैं कि:-
        कवन सो काज कठिन जग माहीं।
        जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।

अर्थात् इस संसार सागर में कौन ऐसा कार्य है जो श्रीहनुमानजी महराज के सामर्थ्य से बाहर का है। अतुलनीय बलशाली, स्वर्णशैल के आभा से युक्त, असुर  रूपी वन के लिए अग्नि सदृश, ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ, समस्त दिव्य गुणों के सागर, कपि समुदाय के अधीश्वर, अखण्ड ब्रह्माण्ड नायक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी के परम भक्त  (नवधा भक्ति के मार्तण्ड) पवनपुत्र श्रीहनुमानजी महराज अपार शक्ति सम्पन्न हैं। उनके सामर्थ्य का पार पाना सूर्य को दीपक दिखाने समतुल्य है।

अष्ट सिद्धियाँ अणिमा, लघिमा, महिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, वशित्व, ईशित्व आदि अष्ट सिद्धियां एवं नव निधियां श्री हनुमान जी में सन्निहित हैं।

  1.  अणिमा :- अणु के समान अतिसूक्ष्म रूप। इसी रूप से लंका में प्रवेश किया श्रीहनुमान् जी ने।
  2.  लघिमा :- शरीर को रुई की भांति हल्का कर लेना।
  3.  महिमा :- शरीर को बड़ा कर लेना।
  4.  गरिमा :- शरीर को भारी कर लेना।
  5.  प्राप्ति :- भौतिक पदार्थों की संकल्प मात्र से प्राप्ति।
  6.  प्राकाम्य :- अनायास भौतिक पदार्थ सम्बन्धी इच्छा की पूर्ति।
  7.  वशित्व :- पंचभूतों को वश में करना।
  8. ईशित्व :- समस्त पदार्थों पर शासन करने का सामर्थ्य।

समस्त सिद्धियों तथा नवनिधियों के आकर (खजाना) श्री हनुमानजी हैं।

उक्त सिद्धियों के साथ ही प्रातिभ, श्रावण, वेदन, आदर्श, आस्वाद, वार्ता आदि षट् सिद्धियों के भी स्वामी हैं। 

लाङ्गूलोपनिषद् में श्रीपवनपुत्र हनुमानजी से बारम्बार प्रार्थना किया गया है, कि आप समस्त दुःखों, ग्रह, भूत, प्रेत, पिशाच सम्बन्धी असह्य कष्टों का हरण करें। सर्वांग शूल (वेदना) को शान्त कर अपनी अहैतुकी भक्ति प्रदान करें।

इस कलिकाल में समस्त प्राणियों के रक्षक श्रीहनुमानजी से हम जो भी अभिलाषा करते हैं, वह हमें तत्काल प्राप्त होता है। लाङ्गूलोपनिषद् का यह अनुष्ठानात्मक प्रयोग बहुत ही प्रभावशाली है। इस अनुष्ठान को बहुत ही तन्मयता से विद्वान् वैदिक ब्राह्मणों के निर्देशन में ही सम्पन्न करानी चाहिए और ब्राह्मण भी विधि-निषेध का अनुपालन करते हुए इस अनुष्ठान को श्रद्धापूर्वक सम्पन्न कराएं।

जो भी साधक श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक श्रीहनुमानजी महाराज की उपासना लाङ्गूलोपनिषद् के अनुष्ठानात्मक पाठ के द्वारा कराता है अथवा स्वयं इस लाङ्गूलोपनिषद् का पाठ करता है उस पर श्री हनुमानजी अपनी कृपा करुणा बरसाते हैं तथा अष्टसिद्धियां एवं नवनिधियां प्रदान करते हैं।

Benefits

श्रीलाङ्गूलोपनिषद् पाठ का माहात्म्य :- 

  1. इस उपनिषद् का अनुष्ठानात्मक पाठ कराने से सभी प्रकार के ज्वर यथा- अतिभयंकर ज्वर, माहेश्वर-ज्वर, विष्णु-ज्वर, वेताल ब्रह्मराक्षस-ज्वर, पित्तज्वर,  सान्निपातिक-ज्वर, विषम-ज्वर, शीतज्वर, एकदिवसीय, द्विदिवसीय, अर्धमासिक, मासिक, वार्षिक आदि ज्वरों को दूर करता है।
  2. मिर्गी, थकावट के कारण मूर्च्छा आदि दुःखों को शान्त करता है।
  3. यह उपनिषद् पाठ शरीर के सभी शूल (पीड़ा) यथा :- अङ्गशूल, अक्षिशूल, शिरश्शूल, उदरशूल, कर्णशूल, नेत्रशूल, गुदशूल, कटिशूल, जानुशूल, पादशूल, आदि समस्त शरीर के पीड़ा को समाप्त करता है।
  4. भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी आदि के बन्धन आदि के बन्धन से मुक्त करता है तथा किसी के द्वारा कराया गया तान्त्रिक प्रभाव को शान्त करता है।
  5. लाङ्गूलोपनिषद् का पाठ तथा अनुष्ठान न्यायालय सम्बन्धी विवाद तथा कारागार से मुक्ति प्राप्त कराता है।
  6. इस उपनिषद् का पाठात्मक अनुष्ठान कराने वाले की ग्रह सम्बन्धी बाधाएं शान्त होती हैं तथा यजमान की सदा सर्वदा कवच की भांति रक्षा करता है।
  7. श्रीहनुमानजी में नैष्ठिक भक्ति प्राप्त कराती है तथा समस्त भौतिक सम्पदाओं से पूर्ण करती है।
Process

श्रीलाङ्गूलोपनिषद् पाठ में होने वाले प्रयोग या विधि:-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारणअभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध  (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13. रक्षाविधान आदि
  14. ब्राह्मणत्रय का भोजन सङ्कल्प
  15. पंचगव्य हवन के लिए अग्नि (विधिनामक अग्नि) स्थापन एवं हवन
  16. पंचभू संस्कार,अग्नि प्रतिष्ठा    
  17. प्रणीतापात्र स्थापन 
  18. पंचगव्य निर्माण 
  19. हवन 
  20. अनन्वारब्ध व्याहृतिहोम
  21. पंचगव्य होम
  22. प्रायश्चित्त होम (पंचवारुण होम)
  23. स्विष्टकृत आहुती 
  24. संस्रवप्राशन  
  25. मर्जनविधि
  26. पवित्रप्रतिपत्ति 
  27. पूर्णपात्रदान 
  28. प्रणीता विमोक 
  29. बर्हिहोम 
  30. पंचगव्यपान 
  31. नामकरण क्रिया
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री :-

  1. रोली, कलावा    
  2. सिन्दूर, लवङ्ग 
  3. इलाइची, सुपारी 
  4. हल्दी, अबीर 
  5. गुलाल, अभ्रक 
  6. गङ्गाजल, गुलाबजल 
  7. इत्र, शहद 
  8. धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  9. यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  10. देशी घी, कपूर 
  11. माचिस, जौ 
  12. दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  13. सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  14. अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  15. चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  16. सप्तमृत्तिका 
  17. सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  18. पञ्चरत्न, मिश्री 
  19. पीला कपड़ा सूती 

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था :-

  1. वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  2. गाय का दूध - 100ML
  3. दही - 50ML
  4. मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  5. फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  6. दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  7. पान का पत्ता - 07
  8. पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  9. पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  10. आम का पल्लव - 2
  11. विल्वपत्र - 21
  12. तुलसी पत्र -7
  13. शमी पत्र एवं पुष्प 
  14. थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि 
  15. अखण्ड दीपक -1
  16. देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा, धोती  आदि 
  17. बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  18. पानी वाला नारियल
  19. तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
  20. गोदुग्ध,गोदधि

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