अपरिमित ऊर्जा प्राप्ति एवं धन-धान्य की वृद्धि हेतु करें इस स्तोत्र का पाठ

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श्रीसूर्याष्टकम् स्तोत्र में आठ श्लोकों के द्वारा भगवान् सूर्य की महिमा को बताते हुए स्तुति की गयी है | भगवान् सूर्य त्रिगुणमय अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, और शिव स्वरुप हैं | सूर्य आत्मा के कारक हैं और साधक को आरोग्य,  बुद्धि,  यश और समृद्धि प्रदान करने वाले हैं। करियर से सम्बन्धित समस्याओं की निवृत्ति हेतु प्रतिदिन भगवान् सूर्य को गन्ध-अक्षत-पुष्प युक्त जल अर्पित करें | प्रतिदिन अथवा रविवार को सूर्याष्टकम् का पाठ करें |

स्तोत्र पाठ :-

                आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
                दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते ।।१।।

हे आदिदेव भास्कर! आपको प्रणाम है, आप मुझ पर प्रसन्न हों, हे दिवाकर! आपको नमस्कार है, हे प्रभाकर ! आपको प्रणाम है।

                सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्।
                श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।२ ।।

सात घोड़ोंवाले रथपर आरूढ़, हाथ में श्वेत कमल धारण किये हुए, प्रचण्ड तेजस्वी कश्यपकुमार सूर्यको मैं प्रणाम करता हूँ।

                लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम्।
                महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।३।।

लोहितवर्ण रथारूढ़ सर्वलोकपितामह महापापहारी सूर्यदेवको मैं प्रणाम करता हूँ।

                त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम्।
                महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।४।।

जो त्रिगुणमय ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप हैं, उन महापापहारी महान् वीर सूर्यदेवको मैं नमस्कार करता हूँ।

               बृंहितं तेजःपुञ्जं च वायुमाकाशमेव च।
               प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।५।।

जो बढ़े हुए तेजके पुंज हैं और वायु तथा आकाशस्वरूप हैं, उन समस्त लोकों के अधिपति सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ।

              बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम्।
              एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।६।।

जो बन्धूक (दुपहरिया) के पुष्पसमान रक्तवर्ण और हार तथा कुण्डलों से विभूषित हैं, उन एक चक्रधारी सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।

              तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेजःप्रदीपनम्।
              महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।७।।

महान् तेज के प्रकाशक, जगत् के कर्ता, महापापहारी उन सूर्य भगवान् को मैं नमस्कार करता हूँ।

             तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम्।
             महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।८।।    

उन सूर्यदेव को, जो जगत्‌ के नायक हैं, ज्ञान, विज्ञान तथा मोक्ष को भी देते हैं, साथ ही जो बड़े-बड़े पापों को भी हर लेते हैं, मैं प्रणाम करता हूँ।

“श्री शिव द्वारा कहा गया सूर्याष्टकम् सम्पूर्ण हुआ” | 

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